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Uniform Civil Code

यूनिफार्म सिविल कोड “Uniform Civil Code” भारत के लिए क्यों है जरुरी?

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यूनिफार्म सिविल कोड (Uniform Civil Code), हाल ही में केन्द्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू यूनिफार्म सिविल कोड यानी सामान नागरिक संहिता को लेकर एक बयान दिया है जिससे फिर से इस पर देश भर में बहस शुरू हो गई है !क्या होता है यूनिफार्म सिविल कोड? , क्या है इसका इतिहास ? इन्ही पहलुओ को जानने की कोशिश करेंगे आज के इस ब्लॉग में!

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क्या है ‘यूनिफार्म सिविल कोड’ “Uniform Civil Code”?

यूनिफार्म सिविल कोड को जानने से पहले यह जानना जरुरी है की कानून क्या होता है –कानून नियमों और विधियों का एक समूह होता है जो किसी विशिष्ट क्षेत्र में लागु होता हो और उस क्षेत्र यानि की विषय में आम लोगों को न्याय प्रदान प्रदान करता हो या जिसका उद्देश्य लोगो को न्याय प्रदान करवाना होता हो

कानून की श्रेणियाँ:कानून की दो श्रेणियाँ होती है सिविल कानून औरअपराधिक कानून!

सिविल कानून:यह कानून दो संगठनों या दो व्यक्तियों के बीच विवाद में लागु होता है जैसे – संपत्ति, धन, आवास, तलाक, बच्चों की कस्टडी आदि

अपराधिक कानूनःयह कानून समाज के खिलाफ हुए अपराधों से संबंधित होता है जैसे – हत्या, रेप, आगजनी, डकैती, हमला आदि

भारत में अपराधिक कानून एक समान है और यह सभी पर एक तरह से लागू होता है चाहे कोई किसी भी धर्म से हो !

अधिकांश विषयों में भारत के सिविल कानूनों में समानता नहीं है ! यहधर्म औरआस्था के आधार पर बदलते रहते हैं ! यानि धर्म के आधार पर कानून का निर्धारण होता है उदहारण के लिए अगर आप हिन्दू है तो आपके लिए अलग कानून होगा और अगर आप मुस्लिम है तो आप पर अलग तरह का कानून लागु होगा

Uniform Civil Code
Uniform Civil Code

इसमें कुछ अपवाद भी है जो सभी लोगो पर लागु होता है जैसे -भारतीय अनुबंध अधिनियम, भारतीय साझेदारी अधिनियम ! परअधिकांश सिविल मामलों में कानून धार्मिक ग्रंथों के आधार पर तय होते हैं! हिंदू में विवाह, तलाक और बच्चा गोद लेनेके लिए अलग कानून है और मुस्लिम में विवाह , तलाक और बच्चा गोद लेने के लिए अलग कानून है ! अधिकांश सिविल मामलों में भारत में धर्म अधिक महत्त्वपूर्णहो जाता है

समान नागरिक संहिता “Uniform Civil Code का उद्देश्यदेश में एक ऐसे कानून का निर्माण करना है जो विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने जैसे मामलों पर सभी धर्म के लोगों पर समान रूप से लागू हो, जिसमे किसीधार्मिक ग्रंथों का हस्तक्षेप नहीं हो, यह न केवल धर्मो के बीच, बल्कि धर्म के अंदर भी महिला और पुरुष के बीच समानता सुनिश्चित करता है।

‘यूनिफार्म सिविल कोड’ “Uniform Civil Code” का इतिहास?

भारत में यूनिफार्म सिविल कोड की अवधारणा की उत्पत्ति औपनिवेशिक काल के दौरान हुई , जब 1835 में ब्रिटिश सरकार ने एक रिपोर्ट पेश की जिसमे अपराधों, सबूतों और अनुबंधों से संबंधित कानूनों में एकरूपता लाने पर ज़ोर दिया गया था लेकिन उस समय इस रिपोर्ट में कहा गया की हिंदुओं और मुसलमानों के व्यक्तिगत कानूनों को इससे बाहर रखा जाना चाहिए ! इसके बाद देश का धार्मिक ढाँचा और अधिक जटिल हो जाने के कारण 1941 में ब्रिटिश सरकार द्वरा हिंदू कानून को संहिताबद्ध करने के लिए बीएन राव समिति का गठन किया गया!

इस समिति ने आज़ादी के बाद अपनी रिपोर्ट पेश की और बी एन राव समिति के सिफारिश के आधार परहिंदुओं, बौद्धों, जैनों और सिखों के कानूनों का संहिताकरण किया गया औरहिंदू उत्तराधिकार अधिनियम पारित किया गया ! हालाँकि मुस्लिम, ईसाई और पारसियों के लिये अलग-अलग कानून लागू रहे ! इस आधार पर हम यह कह सकते है की भारतमें समान नागरिक संहिता का इतिहास काफी पुराना है!

भारतीय संविधान और सर्वोच्च न्यायालय का मत?

भारतीय सविधान के अनुच्छेद 44 के अनुसार राज्य, समग्र भारतीय क्षेत्र में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास करेगा !अनु. 44- राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों (DPSP) का हिस्सा है और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 37 के अनुसार DPSP न्यायलय में गैर-प्रवर्तनीय हैं यानि इसे न्यायलय के माध्यम से लागु नहीं किया जा सकता है ! भारतीय संविधान में ‘समान नागरिक संहिता को लागु करने की गारंटी नहीं दी गई है !

यूनिफार्म सिविल कोड “Uniform Civil Code” भारत के लिए क्यों है जरुरी?

न्यायपलिका द्वारा भी UCC लागू करने पर जोर दिया गया

शाह बानो विवाद (1985): में सर्वोच्च न्यायलय ने संसद को समान नागरिक संहिता पारित करने का आदेश दिया था

सरला मुद्गल केस (1995):में द्विविवाह प्रथा के मुद्दे को संबोधित करते हुए सर्वोच्च न्यायलय ने संसद कोसमान नागरिक संहित लागू करने का आदेश दिया था!

यूनिफार्म सिविल कोड के निहितार्थ?

यूनिफार्म सिविल कोड के माध्यम से संवेदनशील वर्ग को संरक्षण मिल सकेगा, डॉ. अंबेडकर अनुच्छेद 44 के बारे में कहा की इसका उद्देश्य महिलाओं समेत अन्य संवेदनशील वर्गों को सुरक्षा प्रदान करना है और यह राष्ट्रवादी भावना को भी बढ़ावा देता है! धर्म के आधार पर बनाए गए कानूनों में महिलाओं को अधिकार नहीं दिए गए हैं, एक समान कानून से महिलों को पुरुषों के बराबर अधिकार मिल सकेगा!

कानूनों का सरलीकरण देश में विवाह, तलाक, विरासत, उत्तराधिकार, गोद लेने संबंधी अलग-अलग कानून हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, पारसी के लिए है जिससेभारत के पर्सनल लॉ फ्रेमवर्क में काफी जटिलहो गया है , समान नागरिक संहिता से इन कानूनों को सरल किया जासकता है।

व्यक्तिगत कानून विकास में बाधा विकसित देशों (US, UK) में व्यक्तिगत कानून’ नहीं हैं ,इस तरह के कानून तर्कहीन मान्यताओं पर आधारित होती है! जोसमय के साथ समाज और देश के विकास में बाधा उत्पन्न करता है !समान नागरिक संहिता से इन कुप्रथाओं को समाप्त किया जासकता है।

न्यायपालिका पर कम बोझ एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत केउच्च न्यायालयों में 4.64 मिलियन मामले लंबित है औरज़िला न्यायालयों- 31 मिलियन मामले लंबित पड़े हुए है ! इन लंबित मामलों के प्रमुख कारण में से एक‘पर्सनल लॉ’ की जटिलताहै UCC आने से इसमें कमी आएगी!

क्या-क्या चुनौतियाँ मौजूद हैं?

संवैधानिक प्रावधानों का विरोधा भासी होना

भारतीय संविधान के अनुच्छेद-25 सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता का और धर्म को अबाध रूप सेमानने का अधिकार प्रदान करता है !

अनुच्छेद-26 सभी धर्मो को अपने धार्मिक मामलों को प्रबंधित करने का अधिकार प्रदान करता है।

UCC लाने सेइन अनुच्छेदों का उल्लंघन होगा! UCC के लिए, सरकार को संविधान में संशोधन करना होगा

देश की विवधता के लिए खतरा

भारत में अलग-अलग धर्मो के लोग रहते है जिनकी धार्मिक मान्यताएँ और सिद्धांत अलग-अलग है ! उन्हें एक ही नज़रिए से देखना विविधता के लिए खतरा हो सकता है ! और इसी कारण से साल 2018 में विधिआयोग ने UCC की आवश्यकता को नकार दिया था!

अल्पसंख्यकों के बीच अविश्वास

अल्पसंख्यकों के बीच अपनी पहचान को खो देने का डर है,ऐसे में UCC को बहुसंख्यकों द्वारा अल्पसंख्यकों पर जबरन लागू किया गया कानून माना जा सकता है, ऐसी स्थिति में सरकार कोअल्पसंख्यकों को विश्वास में लेना भी बड़ी चुनौती होगा!

सरकार क्या मानती है?

कोई हस्तक्षेप नहीं (1991-2014) इस दौरान सरकार की नीति- अल्पसंख्यक समुदाय के कानूनों में हस्तक्षेप नहींकरने की थी सरकार का मानना था की UCC लाने से अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्तिगत कानूनों में बदलाव करना अनिवार्य होगाऔर सरकार चाहती थी ऐसे बदलावों की शुरुआत समुदाय के बीच में से होनी चाहिए!

हितधारकों से ‘परामर्श’ पर अधिक ज़ोर (2014-2019) इस दौरान सरकार ने UCC की आवश्यकता पर जोर दिया, अल्पसंख्यकों के साथ परामर्शपर जोर दिया गया और इसी के तहत साल 2019 में भारत सरकार ने 21वें विधि आयोग से ‘समान नागरिक संहिता’ से संबंधित विभिन्न मुद्दों की जाँच करने का आग्रह किया!

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